श्री कृष्णावतार बाबारामदेव-परचा मंदिर -कानकी धाम
Kanki, Uttar Dinajpur, Near Kishanganj, West Bengal

श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव

श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
🌸 भगवान की वाणी 🌸
1.मेरी ओर एक बार आकर तो देख, अगर तेरा ध्यान न रखूँ तो मुझे कहना।।
2.मेरा बनकर तो देख, अगर हर किसी को तेरा न बना दूँ तो मुझे कहना।।
3.मेरे लिए कड़वे वचन सुनकर तो देख, अगर कृपा की वर्षा न हो तो मुझे कहना।।
4.मेरे लिए कुछ बनकर तो देख, अगर तुझे अनमोल न बना दूँ तो मुझे कहना।।
5.मेरे रास्ते पर चलकर तो देख, अगर तुझे शांतिदूत न बना दूँ तो मुझे कहना।।
6.मेरा कीर्तन करके तो देख, अगर जगत को भुला न दे तो मुझे कहना।।
7.मेरे नाम पर खर्च करके तो देख, अगर कुबेर के भंडार न खोल दूँ तो मुझे कहना।।
वाणी
8.मेरे पथ पर पाँव रखकर तो देख, अगर तेरे सारे रास्ते न खोल दूँ तो मुझे कहना।।
9.मेरी बातें लोगों से कहकर तो देख, अगर तुझे मूल्यवान न बना दूँ तो मुझे कहना।।
10.कलियुग में जो भी मुझे सच्ची भावना से याद करेगा, मैं तुरंत प्रकट हो जाऊँगा।।
11.मेरे लिए स्वयं को समर्पित करके तो देख, अगर तुझे प्रसिद्ध न बना दूँ तो मुझे कहना।।
12.मेरे चरित्रों का मनन करके तो देख, अगर तुझे ज्ञान के मोती न दे दूँ तो मुझे कहना।।
13.मुझे अपना सहारा बनाकर तो देख, अगर तुझे हर बंधन से मुक्त न कर दूँ तो मुझे कहना।।
14.मेरे लिए आँसू बहाकर तो देख, अगर तेरे जीवन में आनंद का सागर न बहा दूँ तो मुझे कहना।।
🌿 बाबा रामदेव मेरे रास्ते पर चलकर तो देख, अगर तुझे शांतिदूत न बना दूँ तो मुझे कहना।।
जी के परिवार का परिचय 🌿
🔹 वंश परिचय:
राजा रणसी जी के दो पुत्र थे:
- खुमा जी – दो पुत्रियाँ थीं।
- अजमाल जी – दो पुत्र थे:
- वीरमदेव जी
- रामदेव जी (अवतार)
🌸 माता-पिता एवं संबंधी:
- माता: मेणा दे
- पिता: अजमाल जी
- मुँह बोली बहन: डाली बाई
- मासी का बेटा/भाई: हड़बू जी
- डाली बाई का जन्म: बसंत पंचमी, संवत 1406
- रामदेव जी का जन्म: भादवा सुदी दूज, शनिवार, संवत 1409
🔹 विवाह व अन्य पारिवारिक जानकारी:
- रामदेव जी की पत्नी: नेतल (रुक्मणी का अवतार)
- नेटल के पिता: अमरकोट (सिंध) के राजा दलजी सोढ़ा
- विवाह: संवत 1419
- पुत्र: सादाजी एवं देवराज जी (वैशाख सुदी 3, अक्षय तृतीया, संवत 1426)
🌸 डालीबाई का निर्वाण:
- निर्वाण तिथि: भादवा सुदी नवमी, संवत 1442
🔹 बाबा रामदेव जी की समाधि:
- निर्वाण तिथि: भादवा सुदी ग्यारस (11), संवत 1442
- समाधि के बाद हड़बू जी को दिए गए चिह्न:
- वीरगेड़िया
- रतन कटोरा
- पीताम्बर
🌸 ऐतिहासिक निर्माण कार्य:
- पोकरण किले की स्थापना – संवत 1411
- रूणिचा (रामदेवरा) की स्थापना – संवत 1419
- रामसरोवर तालाब की स्थापना – संवत 1425
🔹 समाधि उपरांत चमत्कार:-
- सम्वत 1716 – समाधि के 274 वर्ष बाद बाबा रामदेव जी साधु रूप में हरजी भाटी से मिले।
- हरजी भाटी – बाबा के महान भक्त
🔹 प्रमुख भक्तगण:-
- श्री शायर जी
- श्री मुझो जी
- चंवर भक्त
- भैरव जी भूतड़ा
- भैरव जी की बहन
- तंदूरा वादक
- नगाड़ा भक्त
🙏 गुरुजी:-
- श्री बालीनाथ जी – समाधि: मसूरिया, जोधपुर
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
🌼 बाबा रामदेव जी का परिचय 🙏
राजस्थान में रूणीचा (रामदेवरा) नामक एक पवित्र स्थान है, जहाँ राजा अजमल जी राज करते थे।
उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर वृंदावन बिहारी भगवान श्रीकृष्ण (द्वारकानाथ)
ने लगभग 650 वर्ष पूर्व उनके घर पुत्र रूप में अवतार लिया — जिनका नाम बाबा रामदेव पड़ा।
अजमल जी, महाराज अनंगपाल के बाद रूणीचा की राजगद्दी पर आसीन हुए।
वे भगवान द्वारकानाथ के सच्चे, भावुक और भोले भक्त थे, और समय-समय पर द्वारका जाकर दर्शन किया करते थे।
उन दिनों अजमल जी निःसंतान थे और राज्य में लगातार 2–3 वर्षों तक अकाल पड़ा।
तब एक दिन वे भगवान को मनाने के उद्देश्य से द्वारका जाने के लिए निकले।
उसी समय वर्षा हुई, और प्रसन्न किसान हल कंधे पर रखकर खेतों की ओर बढ़ने लगे।
लेकिन जैसे ही उनकी नजर राजा अजमल जी पर पड़ी, वे अशुभ मानकर घर लौटने लगे।
जब अजमल जी ने इसका कारण पूछा, तो किसानों ने कहा:
🌼 बाबा रामदेव जी का परिचय 🙏
“महाराज, घणी खम्मा। आपको संतान नहीं है। आपको देखकर हमारे शगुन खराब हो गए हैं, अब हमारी बुआई निष्फल हो जाएगी।”
यह सुनकर अजमल जी को अत्यंत आत्मग्लानि हुई।
वे सीधे द्वारकाधीश मंदिर पहुँचे और भगवान के सामने अपनी व्यथा प्रकट की।
जब भगवान की मूर्ति से कोई उत्तर नहीं मिला, तो वे क्रोधित हो उठे।
क्रोध में उन्होंने प्रसाद का लड्डू मूर्ति पर दे मारा और पुजारी से बोले:
“ऐ पुजारी! तेरा द्वारकानाथ कहाँ छिपा बैठा है, बता मुझे!”
पुजारी ने सोचा कि यदि गुस्साए राजा को न रोका गया तो मंदिर को नुकसान हो सकता है।
उसने शांतिपूर्वक कहा:
“राजन! भगवान द्वारकानाथ तो अब समुद्र की गहराई में, गर्मी अधिक होने से, रुक्मिणी और गोपियों के साथ विश्राम कर रहे हैं।”
🌼 बाबा रामदेव जी का परिचय 🙏
यह सुनते ही अजमल जी ने निश्चय किया कि जब तक भगवान से भेंट नहीं होगी, तब तक लौटूंगा नहीं।
वे भक्ति में लीन होकर समुद्र में कूद पड़े।
भक्ति की शक्ति से वे समुद्र की गहराई में पहुँचे, जहाँ उन्होंने देखा कि भगवान शेषनाग पर शयन कर रहे हैं,
और रुक्मिणी उनके चरण दबा रही हैं। भगवान के माथे पर पट्टी बंधी थी, जिसमें खून लगा था।
यह देखकर अजमल जी के मन में विचार आया:
“जिसके सिर पर चोट है, वह मेरे दुख क्या दूर करेगा?”
उन्होंने भगवान से पूछा:
“भगवान! आपके माथे पर पट्टी क्यों?”
भगवान मुस्कराए और बोले:
“एक भोले भक्त ने मुझ पर लड्डू मारा था।”
यह सुनकर अजमल जी को पश्चाताप हुआ। उन्होंने भगवान से क्षमा माँगी। तब भगवान बोले:
“हे भक्त! मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ। वर माँगो, तुम्हारी हर इच्छा पूर्ण करूँगा।”
अजमल जी ने विनम्रता से कहा:
“भगवान! मुझे आपके समान पुत्र चाहिए।”
🌼 बाबा रामदेव जी का परिचय 🙏
भगवान ने कहा:
“तथास्तु! पहला पुत्र तुम्हारी पत्नी की कोख से जन्म लेगा, उसका नाम वीरमदेव रखना।
दूसरा पुत्र मैं स्वयं बनकर तुम्हारे घर जन्म लूंगा, उसका नाम रामदेव रखना।
उस रात उण्डू, कश्मीर और सभी मंदिरों की घंटियाँ अपने आप बजेंगी।
महल का पानी दूध बन जाएगा।
जन्म स्थान से लेकर महल के मुख्य द्वार तक कुंकुम की पगचिह्न (पगलियाँ) बन जाएँगी।
और मेरी आकाशवाणी सुनाई देगी।
मैं अवतारी रूप में प्रसिद्ध हो जाऊँगा।”
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
🌼 बाबा रामदेव जी का परिचय (संक्षिप्त जीवन कथा) 🌼
विक्रम संवत् 1406 की वसंत पंचमी को शेषावतार वीरमदेव जी का जन्म माता मैणा दे की कोख से हुआ।
इसके तीन वर्ष बाद, संवत् 1409 की भादवा सुदी द्वितीया (शनिवार) को
भगवान श्रीकृष्ण के कलियुग अवतार रामदेव जी ने जन्म लिया।
उस दिन चमत्कारी घटनाएँ हुईं—
- घर-आंगन में कुमकुम के नन्हें-नन्हें पगचिह्न उभर आए।
- घर में रखा सारा जल दूध बन गया।
- भगवान द्वारा पूर्व में दिए गए वरदानों के संकेत
- एक-एक करके सत्य होते गए।
यह सब देखकर राजा अजमल जी को विश्वास हो गया कि वास्तव में
भगवान ने उनके घर अवतार लिया है। वे अत्यंत प्रसन्न होकर पूरे राज्य में बधाइयाँ बाँटने लगे।
🙏 बाबा की जीवन दृष्टि और चमत्कार
बाबा रामदेव जी ने जीवन भर ऊँच-नीच, जात-पात का भेद मिटाया।
- वे दलितों और निम्न वर्ग के लोगों के घर स्वयं जाकर प्रेम से मिलते।
- तंदूरा बजाकर वे जन-जन के दुखों का निवारण करते थे।
- उनके चमत्कारों की ख्याति देश-विदेश तक फैलने लगी।
इसी दौरान मक्का-मदीना से पाँच पीर उनकी परीक्षा लेने आए, लेकिन
- बाबा के मधुर स्वभाव, गहरी आध्यात्मिकता और चमत्कारी शक्तियों से प्रभावित होकर
वे नतमस्तक हो गए और घोषणा की:
“आज से आप ‘बाबा रामदेव पीर’ कहलाएंगे, और मुस्लिम समाज भी आपकी इबादत करेगा।”
तभी से हिंदू ही नहीं, मुस्लिम श्रद्धालु भी उन्हें पूरी श्रद्धा से पूजते हैं।
🌷 समाधि एवं जाग्रत देवता की मान्यता
विक्रम संवत् 1442 की भादवा सुदी 11 को रूणीचा (वर्तमान रामदेवरा) में,
रामसरोवर के पास बाबा ने स्वेच्छा से समाधि ली।
लेकिन भक्तों की आस्था है कि बाबा आज भी “हाजिर-हज़ूर” (जाग्रत देवता) हैं।
वे बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों व जातियों के आराध्य हैं —
हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध, हरिजन — सभी भाईचारे से बाबा की भक्ति करते हैं।
🌸 भक्ति व मान्यता
हर साल भादवा माह में लाखों श्रद्धालु बाबा रामदेव जी के
रूणीचा मेले में अपनी मनोकामनाएँ लेकर जाते हैं।
वे श्रद्धा से कहते हैं:
“खम्मा-खम्मा, जय बाबेरी!”
ऐसी मान्यता है कि जो सच्चे दिल से बाबा को पुकारता है, उन्हें बाबा:
- अंधे को आँखें
- लंगड़े को पाँव
- कोढ़ी को स्वस्थ काया
- बाँझ को संतान
- निर्धन को धन
आदि आशीर्वाद स्वरूप प्रदान करते हैं।
🕉️ दोहे (भक्ति भावना के लिए):
“रामा कहूं कि रामदेव, हीरा कहूं कि लाल।
ज्याने मिलिया रामदेव, बांणे किया निहाल।।”“तन मन स्वच्छ बनायके, राखे दृढ़ विश्वास।
प्रेम से सुमरे रामदेव, होवे दुख का नाश।।”
🌟 बाबा रामदेव जी के परचे 🌟
1. माता मैणा दे को परचा (उफनते दूध को शांत करना)
भादवे सुदी द्वितीया (दूज) को जब बाबा रामदेव जी ने अवतार लिया, उस समय राजा
अजमल जी ने यह शुभ समाचार देने के लिए रानी मैणा दे के पास पहुँचे।
रानी ने जब आकर देखा तो पालने में दो बालक थे — एक वीरमदेव, जो उनके गर्भ से जन्मे थे, और दूसरा रामदेव जी।
यह देखकर रानी मैणा दे चकित रह गईं और मन में संशय करने लगीं कि यह कोई जादू-टोना न हो।
वे प्रभु की लीला को न समझ सकीं।
उसी समय बालक रामदेव ने रसोईघर में उफन रहे दूध को
शांत कर दिया। यह देखकर रानी को रामदेव जी की दिव्यता का अनुभव हुआ।
उनका संदेह दूर हो गया और वे प्रेमपूर्वक रामदेव जी को गोद में उठा लिया।
2. रूपा दर्जी को परचा (कपड़े के घोड़े की लीला)
“लीलो घोड़ो नवलखों, ज्यारे मोत्यां जड़ी लगाम।
घोड़लिया पे चढ़िया रामदवे, बाबा रूणींचा रा श्याम।”
बाल्यावस्था में बाबा रामदेव जी ने एक दिन माता मैणा दे से घोड़ा लाने की ज़िद की।
माता ने बहुत समझाया, लेकिन रामदेव जी नहीं माने। अंततः माता ने एक दर्जी
रूपा दर्जी को बुलाकर कपड़े का घोड़ा बनाने का आदेश दिया और कीमती वस्त्र भी दिए।
लेकिन दर्जी के मन में लोभ आ गया। उसने कीमती कपड़ों की जगह पुराने चिथड़ों
से घोड़ा बना दिया और माँ को सौंप दिया।
जब वह घोड़ा बालक रामदेव जी को दिया गया, तो उन्होंने दर्जी की धूर्तता जान ली।
उन्होंने कपड़े के घोड़े पर चढ़कर उसे आकाश में उड़ाना शुरू कर दिया।
यह देख माता मैणा दे घबरा गईं और तुरंत रूपा दर्जी को बुलवाया। दर्जी ने
अपनी गलती स्वीकार की और क्षमा माँगी।
रामदेव जी ने उसे क्षमा करते हुए भविष्य में ईमानदारी से जीवन यापन करने का उपदेश दिया।
3. भैरव राक्षस वध
“जब-जब भीड़ पड़ी भक्तों पर, दौड़-दौड़ आया, प्रभु दौड़-दौड़ आया।”
बाबा रामदेव जी के बाल्यकाल में पोकरण के उत्तर में स्थित साथलमेर गांव में भूतड़ा-भैरव
नामक एक राक्षस उत्पन्न हुआ, जो पहले महेश्वरी वैश्य था।
भैरव के राक्षस बनने का कारण उसकी बहन कुननी थी — एक सुंदर, सुसंस्कारी कन्या, जो
जैसलमेर के राजा नानक जी की वासना का शिकार हुई। यह अन्याय भैरव से सहा नहीं गया, और उसने बदला लेने का निश्चय किया।
वह काशी जाकर अपने गुरु बालीनाथ जी से मार्गदर्शन लेने गया। गुरु ने उसे तप और तंत्र का उपाय बताया:
“अमावस्या की रात काली घटा के दौरान एक कुंवारी ब्राह्मण कन्या और एक गौरी गाय की बाछड़ी को श्मशान में ले जाकर मारकर, उसे पकाकर खाना। तभी तुम विकराल रूप धारण कर राक्षस बन जाओगे।”
“ध्यान रहे, केवल राजा नानक जी ठाकुर का ही वध करना, अन्यथा तुम्हारा भी नाश निश्चित है।”
लेकिन भैरव अपने संकल्प से भटक गया और निर्दोष जनों का भी वध करने लगा।
एक दिन महल में राजा अजमल जी अपने मंत्रियों के साथ भैरव राक्षस के आतंक की चर्चा कर रहे थे।
तभी बालक रामदेव जी वहाँ पहुँचे और यह सब सुनकर उन्होंने ठान लिया कि वे
उस राक्षस का अंत करके धरती को पाप के भार से मुक्त करेंगे।
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
अगली सुबह वे अपने मित्रों के साथ गेंद खेलने के बहाने घर से निकले और खेलते-खेलते
बालीनाथ जी की गुफा में जा पहुँचे, जहाँ भैरव का आना-जाना रहता था।
बालीनाथ जी ने रामदेव जी को देख घबराकर उन्हें एक गूदड़ी (कंबल) में छिपा दिया।
जैसे ही भैरव वहाँ पहुँचा, उसने मानव गंध पाकर उस गूदड़ी को खींचना शुरू कर दिया।
लेकिन वह गूदड़ी द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ती चली गई। यह देख राक्षस
चकित और भयभीत हो गया और वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
रामदेव जी तत्क्षण उसके पीछे दौड़े, उसे पकड़कर घसीटते हुए एक गुफा में धकेल दिया
और वहीं उसका अंत कर दिया। इस प्रकार उस पापी राक्षस का संहार हुआ
और क्षेत्रवासियों को भय से मुक्ति मिली।
4.मिश्री को नमक बनाना
एक दिन की बात है, नगर में लाखु नामक एक बणजारा व्यापारी बैलगाड़ी में मिश्री भरकर बेचने आया।
लेकिन उसने चुंगी कर (टैक्स) चुकाए बिना ही व्यापार शुरू कर दिया।
जब रामदेव जी ने उससे कर न देने का कारण पूछा, तो उसने झूठ बोलते हुए कहा—
“यह तो नमक है, और नमक पर कोई चुंगी नहीं लगती।”
यह सुनकर रामदेव जी ने उसके झूठ का पर्दाफाश करने हेतु उसकी सारी मिश्री को नमक में बदल दिया।
कुछ ही समय में जब ग्राहक मिश्री के बदले नमक पाकर क्रोधित हो उठे,
तो उन्होंने व्यापारी की खूब पिटाई कर दी।
तब वह व्यापारी बहुत पछताया और रामदेव जी को स्मरण कर क्षमा माँगी।
साथ ही उसने कर चुकाने का वचन भी दिया।
रामदेव जी वहीं प्रकट हुए, सभी लोगों को शांत किया और कहा—
“यह अपनी गलती पर पछता रहा है, अतः मैं इसे क्षमा करता हूँ।”
यह कहते ही उन्होंने उस नमक को पुनः मिश्री में बदल दिया।
यह देखकर सभी लोग चकित रह गए और व्यापारी ने जीवन भर
सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
5. पाँच पीरों को परचा
बाबा रामदेवजी की ख्याति केवल राजस्थान तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष और विदेशों तक फैल गई।
उनके दिव्य चमत्कारों और अलौकिक व्यक्तित्व से न केवल हिन्दू, अपितु मुस्लिम समुदाय भी अत्यंत प्रभावित होने लगा।
यह बात सुनकर मक्का से पाँच पीर, बाबा की परीक्षा लेने हेतु रूणिचा धाम पहुँचे।
उन्होंने बाबा रामदेवजी से भेंट की।
बाबा ने उन्हें भोजन का आमंत्रण दिया, परंतु पीरों ने विनम्रतापूर्वक यह कहकर मना कर दिया:
“हम तो केवल अपने कटोरों में ही भोजन करते हैं, और वे कटोरे हम मक्का में ही भूल आए हैं।”
बाबा रामदेवजी यह सुनकर मन ही मन मुस्कराए।
वे समझ गए कि ये सभी पीर उनकी दिव्यता की परीक्षा लेने आए हैं।
उन्होंने ध्यानपूर्वक अपने हाथ फैलाए, और देखते ही देखते पाँचों पीरों के
मक्के में रखे कटोरे उनके समक्ष प्रकट हो गए।
यह दृश्य देखकर पाँचों पीर स्तब्ध रह गए। उन्होंने बाबा की महिमा को
हृदय से स्वीकार किया और सादर भोजन ग्रहण किया। जाते समय
उन्होंने बाबा को “पीरों के पीर रामसापीर” और “हिंदुआपीर” की उपाधि प्रदान की और भावपूर्वक विदा ली।
6. सेठ बोयता रामजी का परचा
सेठ बोयता रामजी, ओसवाल समाज की बोथरा शाखा के प्रतिष्ठित व्यापारी थे।
बाबा रामदेवजी एक दिन अपने भाई वीरमदेव जी से बोले:
“रूणिचा नगर तो सुंदर बस गया है, किंतु यहाँ कुआँ, बावड़ी, तालाब और धर्मशाला जैसी कुछ आवश्यक वस्तुओं का अभाव है। कोई ऐसा श्रद्धालु सेठ हो जो यह पुण्य कार्य कर सके।”
वीरमदेव जी सेठ बोयता रामजी को बाबा के पास लेकर आए। बोयता रामजी बाबा रामदेव जी के अनन्य भक्त थे।
वे अत्यंत धनाढ्य थे, किंतु संतान-सुख से वंचित थे।
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
उन्होंने बाबा से मन्नत मांगी कि यदि उन्हें पुत्र प्राप्त होता है, तो वे बाबा को
रत्नजड़ित बहुमूल्य हार भेंट करेंगे। बाबा ने उनकी मन्नत पूर्ण की और उनके घर एक पुत्ररत्न ने जन्म लिया।
किन्तु पुत्र प्रेम में अंधे होकर सेठ अपने वचन को भूल गए। उनके मन
में विचार आया कि इतने कीमती हार की क्या आवश्यकता है, और उन्होंने बाबा को वह हार नहीं चढ़ाया।
कुछ समय बाद, जब सेठ समुद्री मार्ग से व्यापारिक यात्रा से लौट रहे थे,
उनका जहाज समुद्र में फँस गया। लहरें जहाज के भीतर तक घुसने लगीं, और संकट गहराने लगा। वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें।
तभी उन्हें स्मरण हुआ कि उन्होंने बाबा को वचन देकर भी वह
रत्नजड़ित हार अर्पित नहीं किया। वे अत्यंत पश्चाताप करने लगे,
और बाबा रामदेवजी को स्मरण कर प्रार्थना करने लगे:
“हे बाबा, मैंने भूल की है। कृपया मुझे क्षमा करें और इस संकट से उबारें।”
उनकी सच्ची प्रार्थना सुन बाबा ने उन्हें संकट से मुक्त किया। उसके बाद सेठ
ने अपनी भूल सुधारते हुए बाबा को वह रत्नजड़ित हार अर्पित किया और
धार्मिक सेवा कार्यों में जीवन समर्पित कर दिया।
उसकी प्रार्थना को सुनकर बाबा को उस पर तरस आ गया और बाबा ने
अपने परचे से उस तूफान को शांत करवा कर अपने भक्त को संकट से मुक्त करवा दिया।
7. भाभी के बछड़े को जीवित करना
बाबा रामदेवजी की भाभी को एक बछड़ा अत्यंत प्रिय था। दुर्भाग्यवश,
वह बछड़ा किसी बीमारी के कारण मर गया।
जब यह समाचार रामदेवजी को मिला, तो वे तुरंत अपनी भाभी को
सांत्वना देने पहुँचे। उनकी भाभी, रोते-रोते बाबा से प्रार्थना करने लगी:
“आप तो सिद्ध पुरुष हैं, कृपया मेरे बछड़े को फिर से जीवित कर दीजिए।”
बाबा को भाभी का दुःख सहन नहीं हुआ। उन्होंने एक पल में अपने
चमत्कार से मरे हुए बछड़े को जीवित कर दिया।
भाभी यह देखकर आनंदित और अभिभूत हो उठीं, और बाबा को हृदय से धन्यवाद देने लगीं।
8. जाम्भोजी को पर्चा
लोकश्रुति के अनुसार, जम्भेश्वर महाराज (जाम्भोजी) ने एक विशाल
तालाब खुदवाया, जिसका नाम रखा गया “जम्भलाव”।
उन्होंने इस अवसर पर बाबा रामदेवजी को विशेष आमंत्रण दिया।
बाबा रामदेवजी वहां पहुँचे और अपनी चमत्कारी शक्ति से तालाब के पानी को मीठे से खारा (कड़वा) कर दिया।
यह आश्चर्यजनक घटना आज तक ‘जम्भलाव’ तालाब के जल में परिलक्षित होती है, जो आज भी खारा है।
बाद में बाबा रामदेवजी ने रूणिचा लौटकर “रामसरोवर”
नामक तालाब खुदवाया और जाम्भोजी को निमंत्रित किया।
इस पर जाम्भोजी ने अपनी सिद्धि से रामसरोवर में बालू उत्पन्न कर दी और एक श्राप दे डाला —
कि इस तालाब में छह माह से अधिक पानी नहीं ठहरेगा। और यह सत्य भी सिद्ध हुआ।
9. सारथीया को पुनर्जीवित करना
बाबा रामदेवजी का एक प्रिय बालसखा था, जिसका नाम था सारथीया।
एक दिन सुबह जब वह खेल के लिए नहीं आया, तो रामदेवजी स्वयं उसके घर पहुँचे। वहाँ उसकी माता ने रोते हुए कहा:
“सारथीया अब इस संसार में नहीं रहा। अब वह केवल स्वप्नों में ही दिखाई देगा।”
बाबा रामदेवजी दुखी होकर तुरंत उसके मृत शरीर के पास गए। उन्होंने उसके कंधे को पकड़ा और स्नेहपूर्वक कहा:
“हे सखा! तू मुझसे क्यों रूठ गया? मेरी सौगंध है, उठ और चल मेरे साथ खेलने।”
रामदेवजी की इस करुण पुकार और दिव्य शक्ति से सारथीया जीवित हो उठा
और उनके साथ खेलने चल पड़ा। यह चमत्कार देखकर वहां उपस्थित सभी लोग “बाबा रामदेवजी की जय” के नारों से गूंज उठे।
10. पूंगलगढ़ के पड़िहारों को प र्चा
बाबा रामदेवजी की बहन सुगना का विवाह पूंगलगढ़ के कुँवर उदयसिंह पड़िहार से हुआ था। जब पड़िहारों को यह ज्ञात हुआ कि रामदेवजी
सामाजिक भेदभाव त्याग कर शूद्रों के साथ हरिकर्तन करते हैं, तो उन्होंने रामदेवजी से संबंध समाप्त कर लिए और उन्हें अपमानजनक दृष्टि से देखने लगे।
बाद में, अपने विवाह उत्सव के अवसर पर रामदेवजी ने रत्ना राइका को सुगना को बुलाने हेतु पूंगलगढ़ भेजा। लेकिन
सुगना के ससुराल पक्ष ने उनकी भावना को ठुकरा दिया और रत्ना राइका को कैद कर लिया।
यह बात सुनकर सुगना अत्यंत दुखी हुई और अपने महल में बैठी-बैठी विलाप करने लगी।
रामदेवजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से सुगना का दुःख जान लिया और पुंगलगढ़ की ओर जाने की तैयारी करने लगे। पूंगलगढ़ पहुँचने पर पड़िहारों
के महल के आगे स्थित एक उजड़ स्थान पर आसन लगा कर बैठ गये। देखते ही देखते वह स्थान एक हरे-भरे बाग में तब्दील हो गया।
कुंवर उदयसिंह ने जादू-टोना समझकर सिपाहियों से तोप में गोले भर कर दागने को कहा। सिपाहियों ने ज्योंही गोले दागे वे
गोले रामदेवजी पर फूल बनकर बरसने लगे। यह देखकर कुंवर उदयसिंह रामदेवजी के चरणों मे जाकर गिर गया और अपने किए पर पश्चाताप करने लगा।
रामदेवजी ने उन्हें अपने गले लगाकर माफ किया और अपनी बहिन सुगना एवं दास रत्ना राईका के साथ विदा ली।
11. मुस्लिमशाह को परचा
जब रामदेव जी का सेवक उनकी बहन सुगना को ससुराल से वापस ला रहा था, तब रास्ते में कुछ सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया।
ये सिपाही मुस्लिमशाह नामक एक बादशाह के थे, जो रत्ना राईका और सुगना बाई को बंदी बनाकर लूटना चाहता था।
सुगना बाई ने मन ही मन अपने भाई रामदेव जी को स्मरण किया और रक्षा की प्रार्थना की।
उस समय रामदेव जी के विवाह की रस्में चल रही थीं।
लेकिन अपनी अलौकिक शक्ति से बहन के संकट को जानकर वे विवाह की रस्में छोड़ तुरंत उस स्थान पर पहुँच गए।
जैसे ही वे वहां पहुँचे, सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया और तलवारें निकाल लीं, परंतु प्रभु की कृपा से वे तलवारें फूलों की माला में परिवर्तित हो गईं।
यह देखकर मुस्लिमशाह भयभीत होकर बाबा से क्षमा मांगने लगा। रामदेव जी ने उसे स्त्रियों का सम्मान करने और अपने कर्तव्य का पालन करने का उपदेश दिया और क्षमा कर दिया।
12. मरी हुई बिल्ली को जीवित कर सालियों को परचा
रामदेव जी जब बारात लेकर अमरकोट (जो अब पाकिस्तान में है) पहुँचे, तो वहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। सभी बाराती बारात स्थल पर ठहरे और रामदेव जी विश्राम हेतु अपने स्थान पर चले गए।
इसी दौरान मजाक के उद्देश्य से कुछ सालियाँ एक थाल में मरी हुई बिल्ली को ढककर रामदेव जी के पास लाई और उसे फलों का थाल कहकर उनके समक्ष रख दिया।
रामदेव जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से उस थाल का रहस्य जान लिया। जब उन्होंने कपड़ा हटाया, तो वह मरी हुई बिल्ली जीवित होकर भाग गई।
यह देखकर सभी सालियाँ दंग रह गईं और रामदेव जी के चमत्कार से प्रभावित होकर उनके चरणों में नतमस्तक हो गईं।
13. नेतलदे को स्वस्थ करना
नेतलदे का विवाह रामदेव जी के साथ हुआ था। वे अमरकोट के राजा दलजी सोढ़ा की पुत्री थीं और लोकमान्यता के अनुसार रुक्मिणी का अवतार मानी जाती हैं।
कहा जाता है कि नेतलदे पक्षाघात से पीड़ित थीं और चलने-फिरने में असमर्थ थीं। लेकिन जैसे ही पाणिग्रहण संस्कार शुरू हुआ, रामदेव जी की कृपा से उनमें चमत्कारी रूप से शक्ति आ गई।
फेरों के समय जब रामदेव जी ने उन्हें उठने को कहा, तो वे सहसा उठ खड़ी हुईं और उनके साथ फेरे लिए।
यह चमत्कार देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित और आनंदित हो उठे, और रामदेव जी की जय-जयकार करने लगे।
14. भाणु को पर्चा
जिस रात अमरकोट में रामदेव जी का विवाह हुआ, उसी रात सुगना बाई के पुत्र की सर्पदंश से मृत्यु हो गई।
अंतर्यामी भगवान रामदेव जी ने अपनी बहन के दुःख को जान लिया और रानी नेतलदे व पूरी बारात सहित प्रातः होने से पहले ही अमरकोट से लौट आए।
विवाह के मांगलिक अवसर पर कोई विघ्न न पड़े, इस कारण सुगना बाई ने अपने पुत्र की मृत्यु की बात किसी से नहीं कही।
जब विवाह उपरांत रानी नेतलदे और रामदेव जी को बढ़ाई देने के लिए सुगना नहीं पहुँची, तो रामदेव जी ने उसे बुलवाया।
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
रामदेव जी ने सुगना की उदासी का कारण पूछा, तो वह कुछ देर मौन रही।
उसने प्रसन्नता का अभिनय करने की कोशिश की, परंतु आंखों से अश्रुधारा बह निकली और गला भर आया।
वह सिसकते हुए अपने पुत्र को पुकारने लगी।
तभी रामदेव जी भीतर गए और अपनी दिव्य शक्ति से मृत भांजे को स्पर्श किया तथा पुकारने लगे।
रामदेव जी की पुकार पर वह बालक जीवित हो उठा।
रामदेव जी ने उसे अपनी गोद में बैठाकर दुलार किया। यह दृश्य देखकर
सुगना बाई के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई और उसने अपने पुत्र को सीने से लगाकर रामदेव जी को धन्यवाद दिया।
15. रानी नेतलदे को पर्चा
एक दिन रंगमहल में रानी नेतलदे ने मुस्कराते हुए रामदेव जी से पूछा—
“हे प्रभु! आप तो सिद्ध पुरुष हैं, बताइये मेरे गर्भ में पुत्र है या पुत्री?”
रामदेव जी ने उत्तर दिया, “तुम्हारे गर्भ में पुत्र है, उसका नाम ‘सादा’ रखना।”
रानी को विश्वास नहीं हुआ, तो रामदेव जी ने अपने पुत्र को आवाज दी।
तत्क्षण गर्भ में पल रहा वह बालक बोल पड़ा और अपने पिता के वचनों को सत्य सिद्ध कर दिया।
‘सादा’ शब्द का अर्थ होता है –
आवाज। इसी कारण उस बालक का नाम ‘सादा’ रखा गया।
रामदेवरा से २५ किलोमीटर दूर स्थित ‘सादा’ नामक गाँव, उसी दिव्य घटना की स्मृति में बसा हुआ है।
16. मेवाड़ के सेठ दलाजी को पर्चा
“रामा सामा आवजो, कलयुग भयो करूर,
अरज करूं अजमाल रा, हेलो सांभल जो जरूर।“
कहा जाता है कि मेवाड़ के किसी ग्राम में दलाजी नाम का एक महाजन रहता था। धन सम्पत्ति की उसके पास कोई कमी नहीं थी किन्तु
संतान के अभाव में वह दिन रात चिंतित रहता था। किसी साधू के कहने पर वह रामदेव जी की
पूजा करने लगा उसने अपनी मनौती बोली की यदि मुझे पुत्र प्राप्ति हो जाए तो सामर्थ्यानुसार एक मंदिर बनवाऊँगा ।
इस मनौती के नौ
माह पश्चात उसकी पत्नी के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ। वह बालक जब २ वर्ष का हो गया तो सेठ और सेठानी उसे
साथ लेकर कुछ धन सम्पत्ति लेकर रूणिचा के लिए रवाना हो गये। मार्ग में एक लुटेरे ने उनका पीछा
कर लिया और यह कह कर उनके साथ हो गया कि उसे भी रूणिचा जाना है।
थोड़ी देर चलते ही रात हो गयी और अवसर पाकर लुटेरे ने अपना वास्तविक स्वरूप दिखा ही दिया उसने सेठ को ऊँट को बैठाने के लिए कहा।
मेवाड़ के सेठ
और कटार दिखाकर सेठ की समस्त धन सम्पत्ति हड़प ली तथा जाते-जाते सेठ की गर्दन भी काट गया।
रात्रि में उस निर्जन वन में अपने बच्चे को साथ लिए सेठानी करूण विलाप करती हुयी रामदेव को पुकारने लगी।
अबला की पुकार सुनकर दुष्टों के संहारक और भक्तों के उद्धारक भगवान,
रामदेव जी अपने लीले घोड़े पर सवार होकर तत्काल वहां आ पहुँचे।
आते ही रामदेव जी ने उस अबला से अपने पति का कटा हुआ सिर गर्दन से
जोड़ने को कहा। सेठानी ने जब ऐसा किया तो सिर जुड़ गया तत्क्षण दला जी जीवित हो गया।
बाबा का यह चमत्कार देख दोनों सेठ सेठानी बाबा के चरणों में गिर पड़े।
बाबा उन्को सदा सुखमय जीवन का आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गये। उसी स्थल पर दलाजी ने बाबा का एक भव्य मंदिर बनवाया ।
17. अजमल जी को पर्चा
जब रामदेव जी ने गाँववालों को एकत्रित कर यह घोषणा की कि अब वे समाधि लेने जा रहे हैं, तो सभी की आँखों में आँसू आ गए।
गाँववाले रोते हुए, गले लगकर बाबा को इस तरह छोटी उम्र में समाधि लेने से रोकने का आग्रह करने लगे।
बाबा ने सबके प्रेम को सहर्ष स्वीकार करते हुए शांत स्वर में कहा —
“हे प्रिय बंधुओं! मेरा इस संसार में अवतरण एक विशेष उद्देश्य से हुआ था। वह कार्य अब पूर्ण हो गया है, इसलिए अब मेरे यहाँ रुकने का कोई कारण नहीं बचा है।”
बाबा ने यह भी आग्रह किया कि वे सभी उनके जाने के बाद भी सत्य वचन और धर्म के मार्ग पर चलें।
जब समाधि लेने का समाचार राजा अजमल को मिला, तो वे व्याकुल होकर रामसरोवर तालाब पहुँचे।
उन्होंने अपने पुत्र रामदेव जी को गले लगा लिया और विनती करने लगे—
“पुत्र! मुझे छोड़कर मत जाओ। तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है।”
बाबा ने उन्हें प्रेमपूर्वक शांत करते हुए कहा—
“हे राजन! मैं आपका आज्ञाकारी सेवक हूँ। आपने मुझे जो वचन दिया था, उसे मैंने पूरा किया।
आपके महल में पुत्र रूप में जन्म लिया, और जो कार्य मुझे सौंपा गया था, उसे पूर्ण भी किया।
अब मेरा कर्तव्य समाप्त हो गया है, कृपया मुझे जाने की आज्ञा दें।”
इतना कहकर रामदेव जी ने अजमल जी को द्वारिकाधीश (भगवान विष्णु) का दिव्य रूप दिखाया,
और फिर समाधि में लीन हो गए।
18. डाली बाई को –परचा
बाबा रामदेव जी ने समाधि से पहले ग्रामवासियों को विदाई देते हुए कहा—
“अब मेरे जाने का समय आ गया है। मैं आप सभी को प्रणाम करता हूँ।”
उन्होंने जाते-जाते एक महत्वपूर्ण संदेश भी दिया:
“इस युग में न कोई ऊँचा है, न कोई नीचा। सब मनुष्य समान हैं। हर व्यक्ति ईश्वर का प्रतीक है, इसलिए किसी में भी भेदभाव मत करना।”
बाबा को रोकने के सारे प्रयास असफल हो गए।
ग्रामवासियों ने यह दुःखद समाचार डाली बाई को सुनाया और उनसे कुछ करने की विनती की।
डाली बाई, जो बाबा की बहन समान भक्त थीं,
नंगे पाँव दौड़ती हुई रामसरोवर पहुँचीं।
जैसे ही वे पहुँचीं, उन्होंने बाबा से कहा—
“हे प्रभु! आप जिस समाधि की बात कर रहे हैं, वह समाधि तो मेरी है!”
डाली बाई
बाबा ने आश्चर्य से पूछा—
“बहन! तुम यह कैसे कह सकती हो कि यह समाधि तुम्हारी है?”
डाली बाई ने उत्तर दिया—
“यदि इस स्थान को खोदने पर आटी, डोरा और कांग्सी मिल जाएँ, तो यह मेरी समाधि है।”
ग्रामवासियों ने समाधि स्थल को खोदा और वही वस्तुएं प्राप्त हुईं।
यह देखकर बाबा ने स्वीकार किया कि वास्तव में वह स्थान डाली बाई की समाधि है।
डाली बाई ने बाबा से कहा—
“हे प्रभु! अभी तो इस सृष्टि में आपके अनेक कार्य बाकी हैं। आप इतनी जल्दी क्यों जा रहे हैं?”
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
बाबा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया—
“अब मेरा इस धरती पर कोई कार्य शेष नहीं है। भले ही मैं देह से विदा ले रहा हूँ,
लेकिन मेरे भक्त जब भी सच्चे मन से मुझे पुकारेंगे,
मैं सदैव उनकी सहायता के लिए प्रकट होऊँगा।”
फिर उन्होंने कहा—
“हे डाली! तुम्हारी भक्ति से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ।
आज से तुम्हारी जाति के सभी लोग मेरे भजन गायेंगे और उन्हें ‘रिखिया’ कहा जाएगा।”
इतना कहकर रामदेव जी ने डाली बाई को अपने विष्णु रूप के दर्शन दिए।
वो दृश्य देखकर डाली बाई धन्य हो गईं
और बाबा से पहले ही समाधि में लीन हो गईं।
19. हरजी भाटी को परचा
रामदेवरा से कुछ ही मील की दूरी पर उगमसी भाटी नामक एक क्षत्रिय रहते थे,
जो भेड़-बकरियाँ चरा कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। वे रामदेव जी के परम भक्त थे
और प्रतिदिन उनके नाम का कीर्तन किया करते थे। बाबा की कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम हरजी रखा गया।
जब हरजी लगभग १४ वर्ष के हुए, तो एक दिन वे जंगल में भेड़-बकरियाँ चरा रहे थे।
उसी समय रामदेव जी साधु वेश में वहाँ पधारे। उन्होंने हरजी से भोजन हेतु एक बकरी का दूध माँगा।
हरजी ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया—
“महाराज! मेरी बकरियाँ अभी ब्याही नहीं हैं, इसलिए उनके थनों में दूध नहीं आता। आपके सत्कार में असमर्थ होना मेरे लिए बड़ा संकट है।”
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
साधु वेशधारी रामदेव जी मुस्कराकर बोले—
“वत्स! मैं इस तपती रेत पर दूर से पैदल चलकर आया हूँ। मुझे तो तुम्हारी समस्त
बकरियों के थनों में दूध दिखाई दे रहा है। लो, यह कटोरा लेकर जाओ और दूध निकाल लाओ।”
हरजी भयभीत हो गए कि कहीं यह साधु उन्हें श्राप न दे दें। उन्होंने श्रद्धापूर्वक
कटोरा लिया और एक बकरी के थन दबाए। आश्चर्य! कटोरा
देखते ही देखते दूध से भर गया। यह दृश्य देख हरजी अत्यंत चकित रह गए।
उन्होंने साधु को दूध का कटोरा सौंपते हुए कहा—
“हे प्रभु! आप कौन हैं? मैं अज्ञानी, आपको पहचान न सका। कृपया क्षमा करें।”
तब रामदेव जी ने अपने दिव्य रूप में प्रकट होकर हरजी को साक्षात दर्शन दिए और आशीर्वाद प्रदान करते हुए अंतर्ध्यान हो गए।
उस दिन के बाद से हरजी भाटी ने अपना जीवन रामदेव जी की भक्ति में समर्पित कर दिया और भविष्य में बाबा के सेवक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
20. हाकिम हजारीमल को परचा
एक बार हरजी भाटी एक बाग में बैठे रामदेव जी का सत्संग कर रहे थे। कुछ लोगों ने तत्कालीन हाकिम हजारीमल से
शिकायत की कि हरजी एक पाखंडी है और लोगों को भ्रमित कर रहा है। यह सुनकर हाकिम ने
अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि “उस पाखंडी को पकड़ो और काल कोठरी में डाल दो।”
जब सिपाही बाग में पहुँचे, तब हरजी श्रोताओं के बीच बैठकर भक्ति में लीन थे।
उनके पास बाबा का लीला घोड़ा भी रखा था
और गुग्गुल-धूप जल रहा था। हाकिम ने क्रोध में आकर कहा—
“धूर्त! मैं तुझे तेरे नकली घोड़े सहित कालकोठरी में सड़ा दूंगा।”
इतना कहकर उसने हरजी और कपड़े के
बने घोड़े को काल कोठरी में बंद करवा दिया,
और घोड़े के आगे दाना-पानी रखवा दिया।
हरजी ने कोठरी में बैठकर बाबा रामदेव जी से करुणा पूर्वक
अरदास की। हरजी की पुकार सुनकर बाबा ने अपनी व्यापक सिद्धि से हाकिम को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा—
“
उठ! मेरे भक्त हरजी को तत्काल मुक्त कर, नहीं तो तेरा सर्वनाश हो जाएगा।”
स्वप्न में यह वाक्य सुनते ही हाकिम डर के मारे दो बार पलंग से गिर
पड़ा और घबराकर काल कोठरी की ओर भागा।
वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि घोड़ा दाना-पानी खा रहा है
और अपनी टापों से धरती को खोद रहा है। यह चमत्कार देखकर हाकिम हक्का-बक्का रह गया।
उसने तुरंत हरजी से क्षमा मांगी और बाबा रामदेव जी का भक्त बन गया। इसके बाद वह स्वयं बाबा की
महिमा और हरजी की भक्ति का प्रचार करने लगा।
21. हडबू जी को परचा
हडबू जी सांखला, रामदेव जी के मौसीपुत्र थे। जब उन्हें रामदेव जी के जीवित समाधि लेने का
समाचार मिला, तो वे तुरंत अपने घोड़े पर सवार होकर रूणिचा की ओर चल पड़े।
कुछ दूर जाने पर उन्होंने एक वृक्ष के नीचे रामदेव जी को बैठे देखा। हडबू जी अत्यंत प्रसन्न हुए और बाबा से लिपट गए।
हडबू जी ने पूछा—
“प्रभु! आपके समाधि लेने की जो चर्चा है, क्या वह सत्य है?”
बाबा मुस्कराए और बोले—
“भाई! इस संसार में जितने मुँह, उतनी बातें। कौन सत्य है और कौन मिथ्या, यह कोई नहीं कह सकता।”
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
फिर रामदेव जी ने उन्हें रत्न कटोरा, वीर गेड़िया और पीताम्बर देकर कहा—
“इन्हें लेकर अजमल जी को दे आओ, मैं घोड़ा लेकर आता हूँ।”
जब हडबू जी रूणिचा पहुँचे, तो वहाँ सभी लोग शोकग्रस्त थे। उन्होंने गाँव वालों से पूछा तो पता चला कि बाबा ने जीवित समाधि ले ली है।
हडबू जी ने कहा—
“कैसी समाधि? देखिए ये रत्न कटोरा और वस्त्र, अभी बाबा ने मुझे दिए हैं।”
ग्रामवासियों ने आश्चर्य से कहा—
“ये वस्तुएँ तो बाबा के साथ समाधि में रखी गई थीं!”
तब वहाँ के तंवर जाति के लोग संशय में पड़ गए और
समाधि की सत्यता की जांच के लिए खुदाई करने लगे। तभी आकाशवाणी हुई—
“तुमने मेरी आज्ञा के विरुद्ध मेरी समाधि खोदकर मेरे विश्वास को खंडित किया है।
इसलिए आज से तुम्हारी संतति में कोई भी पीर नहीं होगा।”
22. मुस्लिम लंगड़े को परचा
एक गाँव में एक मुस्लिम व्यक्ति रहता था, जिसकी एकमात्र संतान जन्म से ही विकलांग थी।
उसके पुत्र के दोनों पैर किसी रोग के कारण निष्क्रिय हो चुके थे। उसने बहुत उपचार करवाए, पर कोई लाभ नहीं हुआ।
एक दिन गाँव से होकर कुछ लोग रामदेव जी के कीर्तन करते हुए निकले। उसने पूछा—
“ये किसका कीर्तन है?”
लोगों ने बताया—
“ये रूणिचा पीर बाबा रामदेव जी हैं, जो सच्चे दिल से प्रार्थना करने वालों की पीड़ा हर लेते हैं।”
यह सुनकर वह मुस्लिम अपने पुत्र को लेकर रूणिचा के लिए रवाना हुआ। लंबे सफर के बाद एक स्थान पर पेड़ की छांव में वे विश्राम कर रहे थे, तभी रामदेव जी अपने लीला घोड़े पर वहाँ पहुँचे।
वह मुस्लिम व्यक्ति बाबा के चरणों में गिर पड़ा और अपने पुत्र के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने लगा।
रामदेव जी ने कहा—
“भक्त! तू क्यों चिंता करता है? देख, तेरा पुत्र चल सकता है।”
ज्यों ही बाबा ने कहा, वह लड़का चमत्कारी रूप से खड़ा हो गया और बिना सहारे के चलने लगा।
पिता-पुत्र दोनों भावविभोर होकर बाबा के चरणों में गिर पड़े और जयघोष करने लगे। वहाँ पुष्पवर्षा होने लगी, और लोगों ने बाबा की महिमा का गुणगान किया।
23. रानी रूपादे और रावल मालजी को परचा
रावल मालजी मारवाड़ के शासक थे और महवे नगर उनकी राजधानी थी। उनकी रानी, रूपादे, रामदेव जी की अनन्य भक्त थीं, जबकि मालजी रामदेव जी की भक्ति को मात्र आडंबर समझते थे और रानी की श्रद्धा का विरोध करते थे।
एक बार नगर में मेघवाल जाति के एक भक्त के यहाँ बाबा रामदेव जी का जम्मा (जन्मोत्सव) मनाया जा रहा था। रानी रूपादे ने राजा से उसमें सम्मिलित होने की अनुमति मांगी, परन्तु राजा ने जात-पांत की मान्यताओं के कारण सख्ती से मना कर दिया और रानी को एक कमरे में बंद करवा दिया।
रूपादे ने मन ही मन बाबा का स्मरण किया। तभी बाबा के चमत्कार से कमरे का ताला अपने आप खुल गया और पहरेदार मूर्छित हो गए। रानी अवसर पाकर सीधे जम्मे में पहुँच गई। वहाँ सबने रानी का स्वागत किया।
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
परंतु वहाँ रावल मालजी का एक गुप्तचर मौजूद था। उसने रानी की चुगली करने का निर्णय लिया और प्रमाण के रूप में रानी की मोजड़ी लेकर महल पहुँच गया। जैसे ही वह राजा को मोजड़ी दिखाने लगा, उसके पूरे शरीर पर फोड़े-फुंसी हो गए और वह अंधा हो गया।
तभी वहाँ रानी रूपादे भी पहुँच गईं। उन्होंने गुप्तचर पर दया कर बाबा से उसकी भूल के लिए क्षमा माँगी और उसे ठीक करने की प्रार्थना की। बाबा की कृपा से वह गुप्तचर पुनः स्वस्थ हो गया और रानी से क्षमा मांगने लगा।
यह सब देखकर रावल मालजी की आँखों से आडंबर का पर्दा हट गया। उन्होंने बाबा रामदेव जी की महिमा स्वीकार की और नतमस्तक होकर जयगान करने लगे। यही रावल मालजी आगे चलकर उगमसी भाटी से दीक्षा लेकर “मल्लीनाथ” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
24. सिरोही निवासी एक अंधे साधु को परचा
एक बार सिरोही से एक अंधा साधु कुछ अन्य लोगों के साथ पैदल यात्रा करते हुए रूणिचा जा रहा था। रास्ते में थकावट के कारण वे लोग एक गाँव में रात को विश्राम के लिए रुके।
रात के समय जब साधु सोया हुआ था, तो उसके साथी उसे अकेला छोड़कर आगे निकल गए। आधी रात को जब अंधा साधु जागा तो वहाँ कोई नहीं था। वह बहुत परेशान होकर भटकने लगा और अंततः एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगा।
उस क्षण उसे अपने अंधेपन का जितना दुःख हुआ, उतना पहले कभी नहीं हुआ था। उसकी पुकार सुनकर बाबा रामदेव जी उसकी पीड़ा से द्रवित हो गए। उन्होंने प्रकट होकर उस साधु को दर्शन दिए और उसके नेत्रों की ज्योति लौटा दी।
उस दिन के बाद से वह साधु वहीं उस खेजड़ी के पास रहने लगा। उसने उस स्थान पर रामदेव जी के पगलिये (चरण चिन्ह) स्थापित किए और उनकी पूजा करने लगा। कहा जाता है कि वहीं उसने समाधि भी ली थी।
मान्यताएँ
अवतारी पुरुष एवं जन-जन की आस्था के केंद्र बाबा रामदेव जी ने अपने समाधि स्थल के रूप में अपनी कर्मभूमि रामदेवरा (रूणीचा) को ही चुना। जिस स्थान पर बाबा ने समाधि ली, वहाँ बीकानेर के राजा गंगासिंह जी ने एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएँ हैं, जिनके प्रभाव से भक्तजन अपने कष्टों और दुःखों से मुक्ति पाते हैं।
घोड़लियो (कपड़े का घोड़ा)

“घोड़लियो” अर्थात कपड़े का घोड़ा, बाबा की प्रिय सवारी मानी जाती है। मान्यता है कि बाल्यकाल में बाबा रामदेव ने अपनी माता मैणादे से घोड़ा मंगवाने की ज़िद की। माँ ने बहुत समझाया, लेकिन जब बालक रामदेव नहीं माने, तो अंततः माता ने एक दरजी (रूपा दरजी) को कपड़े का घोड़ा बनाने का आदेश दिया और कीमती वस्त्र भी इसके लिए दिए।
दरजी ने लोभवश उन वस्त्रों को अपने पास रख लिया और पुराने चिथड़ों से घोड़ा बना कर माता को दे दिया। माता ने वह घोड़ा रामदेव जी को खेलनें के लिए दे दिया, परंतु बालक रामदेव, जो कि स्वयं एक अवतारी पुरुष थे, दरजी की इस धोखाधड़ी को जान गए।
उन्होंने चमत्कार स्वरूप उस कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना शुरू कर दिया। यह देख माता घबरा गईं और दरजी को बुलवाया। जब दरजी आया तो उसने अपनी गलती स्वीकार की और क्षमा माँगी। बाबा ने उसे क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने का वचन लिया।
इसी कारण आज भी बाबा के भक्तजन संतान सुख की प्राप्ति हेतु श्रद्धा से बाबा को कपड़े का घोड़ा अर्पित करते हैं।
गुग्गल धूप
गुग्गल एक प्रकार की सुगंधित धूप है, जो मुख्यतः राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है। यह गोंद के समान होता है और पेड़ों की छाल से निकलता है। मान्यता है कि बाबा रामदेव जी प्रसाद से अधिक धूप खेवण (धूप दिखाने) से प्रसन्न होते हैं।
इसकी महत्ता इस प्रसिद्ध दोहे में वर्णित है:
हरजी ने हर मिल्या, सामे मारग आय।
पूजण दियो घोड़ल्यो, धूप खेवण रो बताय।।
इस दोहे के अनुसार बाबा ने अपने भक्त हरजी भाटी को यह संदेश दिया था कि –
“हे हरजी! मेरे सभी भक्तों को कह देना कि जो गुग्गल धूप से मुझे धूप दिखाएँगे, उनके घरों में सुख-शांति बनी रहेगी, और मैं स्वयं वहाँ निवास करूँगा।”
आज भी भक्त गुग्गल के साथ-साथ बत्तीसा, लोबान, आशापुरी आदि प्रकार की धूप का प्रयोग करते हैं।
डाली बाई का कंगन

डालीबाई की समाधि के पास स्थित पत्थर का बना कंगन श्रद्धा का एक अद्भुत प्रतीक है। मान्यता है कि इस कंगन के भीतर से निकलने से सभी प्रकार के रोग, पीड़ा और कष्ट दूर हो जाते हैं।
मंदिर में आने वाले श्रद्धालु विशेष रूप से इस कंगन के भीतर से निकलते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस कंगन से निकलने के बाद ही बाबा की यात्रा पूर्ण होती है।
नगाड़ा (हाज़री)
भक्तों को प्रभु भक्ति में प्रत्येक वस्तु में भगवान का स्वरूप दिखाई देता है। इसी का सजीव उदाहरण है — रामदेव मंदिर में रखा हुआ लगभग ६५० वर्ष पुराना नगाड़ा, जो बाबा रामदेव जी की कचहरी में सुरक्षित है।
मान्यता है कि जब कोई श्रद्धालु बाबा के दर्शन हेतु मंदिर आता है, तो वह इस नगाड़े को बजाकर बाबा के दरबार में अपनी हाज़िरी दर्ज कराता है। यह एक प्रकार से आस्था और समर्पण की प्रतीक क्रिया है, जिससे भक्त बाबा को अपनी उपस्थिति का भावात्मक संकेत देता है।
पगलिया (पद-चिह्न)
‘पगलिया’ राजस्थान की लोकभाषा में ‘पद-चिह्न’ को कहा जाता है।
बाबा रामदेव जी के पगलिया श्रद्धालु अपने घर के पूजा स्थल या अन्य
पवित्र स्थानों पर स्थापित करते हैं। इन पवित्र पद-चिह्नों की महिमा इस प्रसिद्ध दोहे में व्यक्त की गई है:
“और देवां रा माथा तो पूजीजे,
म्हारे बापजी रा पगलिया पूजीजे।”
अर्थात्, अन्य देवताओं के चरणों में सिर नवाया जाता है, परंतु बाबा रामदेव ऐसे
एकमात्र देव हैं जिनके पगलिया स्वयं पूजे जाते हैं।
आमतौर पर संगमरमर से बने पगलिये श्रद्धालु अपने घर लाते हैं, वहीं कुछ भक्तजन सोने,
चाँदी आदि बहुमूल्य धातुओं से बने पगलियों को भी श्रद्धा से स्थापित करते हैं और नित्य पूजन करते हैं।
पवित्र जल
जैसे गंगाजल को हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है, वैसे ही बाबा रामदेव जी के
निज मंदिर में अभिषेक हेतु प्रयुक्त जल भी विशेष महत्त्व रखता है।
यह जल बाबा की “पर्चा बावड़ी” से लाया जाता है और इसमें दूध, दही, घी, शहद व शक्कर
को मिलाकर पंचामृत रूप में तैयार किया जाता है। यही जल बाबा के अभिषेक में प्रयोग होता है।
भक्त इस जल को “राम झरोखा” में स्थित एक निकास नली से प्राप्त करते हैं और श्रद्धा से अपने घर ले जाते हैं।
मान्यता है कि जिस प्रकार गंगा स्नान से पापों का नाश होता है,
उसी प्रकार इस पवित्र जल का नित्य आचमन करने से सभी रोग व मानसिक विकार दूर होते हैं।
काजल (धूप का काजल)
यह काजल बाबा रामदेव जी के निज मंदिर में अखंड ज्योत से उठने वाले धुएँ से निर्मित होता है।
लोक मान्यता है कि भक्तजन इस काजल को मंदिर से प्राप्त कर उसमें देसी घी मिलाकर
अपनी आँखों में लगाते हैं, जिससे नेत्र संबंधी रोगों से राहत मिलती है।
इस काजल को श्रद्धा से घर ले जाकर सुरक्षित रखा जाता है और रोग-निवारण हेतु उपयोग किया जाता है।
यह एक प्रकार से आस्था और औषधीय विश्वास का अद्भुत संगम है।
मिट्टी की गोलियाँ
रामसरोवर तालाब की मिट्टी को भक्तजन औषधीय गुणों के कारण श्रद्धापूर्वक अपने साथ लेकर जाते हैं।
मान्यता है कि यह वही पवित्र तालाब है, जिसकी खुदाई स्वयं बाबा रामदेव जी ने करवाई थी।
इस तालाब की मिट्टी से बने लेप के प्रयोग से चर्म रोग, जैसे कि दाद, खुजली, सफेद दाग और कुष्ठ रोग, में राहत मिलती है।
भक्तजन इस मिट्टी की छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर उदर रोगों, जैसे कि गैस, अल्सर आदि के उपचार हेतु उसका सेवन भी करते हैं।
तालाब की मिट्टी की खुदाई और गोलियों के निर्माण में आज भी स्थानीय “गूंदली” जाति के
बेलदार सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
वे मिट्टी को “पर्चा बावड़ी” के पवित्र जल से मिलाकर गोलियाँ तैयार करते हैं, जिन्हें श्रद्धालु श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।
पत्थर के घर बनाना
रामसरोवर तालाब की पाल पर श्रद्धालु पत्थर से छोटे-छोटे घर बनाते हैं।
इस प्रथा के पीछे आस्था है कि जब वे इस रूप में बाबा के सामने
अपने सपनों का घर बनाते हैं, तो बाबा उनके निवास को भी आशीर्वाद देते हैं और उसमें स्वयं वास करते हैं।
यह श्रद्धा का प्रतीक है कि “बाबा हमारे घर में भी वास करें।”
पैदल यात्रा की परंपरा
“चारों खूट चौदह भूवन में थांरी जय हो जय जय कारी,
जगमग-जगमग करां आरती थांरी, जय हो नेजा धारी…”
भादवा माह (हिंदी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास) में बाबा रामदेव जी के
पावन स्थल रामदेवरा में एक माह चलने वाला विशाल मेला आयोजित होता है।
इस मेले में लाखों श्रद्धालु देशभर से पैदल यात्रा करते हुए बाबा के दरबार में पहुंचते हैं।
कोई संतान प्राप्ति, कोई रोग-मुक्ति, तो कोई सुख-शांति की कामना लेकर आता है।
अधिकतर यात्री संघ (समूह) बनाकर यात्रा करते हैं।
रास्ते भर जयकारे, भजन, नृत्य और जागरण का आयोजन करते हैं।
हर पड़ाव पर भक्तजन एकत्र होकर भक्ति की संध्या करते हैं।
जब ये श्रद्धालु बाबा के दरबार तक पहुँचते हैं, तो उनके चेहरे पर थकान नहीं, बल्कि बाबा के दर्शन की उमंग और जोश होता है।
चप्पल छोड़ने की परंपरा (नंगे पाँव यात्रा)
बाबा रामदेव जी के दरबार में एक विशेष मान्यता यह भी है कि यहाँ पहुँचने के बाद भक्तजन अपने जूते-चप्पल वहीं त्याग देते हैं।
उनका विश्वास होता है कि वे जिन कष्टों, बीमारियों, दुखों और समस्याओं के साथ यहाँ आए थे, उन्हें वे चप्पलों के रूप में बाबा के चरणों में छोड़ देते हैं,
और जब वे वापस लौटते हैं, तो एक नवीन जीवन की ओर अग्रसर होते हैं — बिना किसी बोझ के, बाबा की कृपा से।
श्री बाबा रामदेव जी की समाधि कथा
एक दिन श्री रामदेव जी ने अपने माता-पिता से कहा –
“मेरे प्रियजन, अब मुझे इस शरीर में नहीं रहना है। मैंने संसार के कर्तव्यों का निर्वाह कर लिया है और अब समाधि लेना चाहता हूँ। कृपया मेरे सभी संबंधियों को बुला लीजिए।”
सबके एकत्र हो जाने पर श्री रामदेव जी ने ध्यान-मुद्रा में बैठकर आंखें खोलीं और बोले –
“मैंने आप सबको इसीलिए बुलाया है ताकि अपने अंतिम समय में आप सभी से मिल सकूं।
अब आप सब ‘राम नाम’ का जाप करें। घबराना या रोना मत, विवेक से काम लेना।
मैं कल समाधि लूंगा। रात्रि जागरण करना, गुलाल-कुमकुम उड़ाना, गंगाजल, गुलाब, केवड़ा, चमेली का इत्र छिड़कना।
दीपक जलाकर गूगल धूप लगाना, अखंड कीर्तन करना और ढोल-नगाड़े बजाते हुए समाधि स्थल तक आना।”
उन्होंने अपने अंतिम उपदेश में कहा –
“कलियुग में केवल नाम-स्मरण, कीर्तन और भक्ति से ही कल्याण संभव है। श्री विष्णु नारायण के नाम का जप करना कभी न छोड़ना।”
विदाई उत्सव
भाद्रपद शुक्ला नवमी के दिन श्री रामदेव जी ने सुंदर वेशभूषा धारण की, सिर पर मुकुट
रखा और माता-पिता, परिवार, दास-दासियाँ, मित्र व भक्तों के साथ गुलाल उड़ाते, शंख-शहनाई बजाते हुए समाधि स्थल तक पहुंचे। वहाँ उन्होंने अपने अंतिम वचनों में कहा –
“बंधुओ! मैं इस नश्वर शरीर को छोड़ रहा हूँ, पर आत्म रूप से सदैव आपके साथ रहूँगा।
जो मेरा नाम प्रेम से लेंगे, उनके कार्य सिद्ध होंगे। मेरे गुणों का कीर्तन करने से पापों का नाश होगा।”
डाली बाई का चमत्कार

उसी समय डाली बाई जंगल में बछड़े चरा रही थी। उसने कीर्तन और शंख की ध्वनि सुनी और किसी पथिक से पूछा। उत्तर मिला –
“अरी पगली! तुम्हारे गांव रूणीचा के बाबा रामदेव जी समाधि लेने जा रहे हैं।”
यह सुनते ही डाली बाई बेहोश-सी हो गई और दौड़ती हुई लोगों की भीड़ को चीरते हुए समाधि स्थल पहुंची।
वह बाबा के चरणों में गिर पड़ी और बोली –
“आपने मुझसे वादा किया था कि मुझे छोड़कर नहीं जाएंगे, फिर यह सब चुपचाप क्यों कर रहे हैं?”
डाली ने समाधि के स्थान को लेकर प्रश्न उठाया और कहा –
“यह समाधि मेरी है। अगर खोदने पर आंटीडोर और कांगसी निकलें तो यह मेरी होगी,
और अगर पाट, पीतांबर, खड़ाऊं, शंख आदि निकलें तो आपकी।”
जब जगह खुदवाई गई, तो डाली की भविष्यवाणी सच साबित हुई —
आंटीडोर और कांगसी मिले। सब लोग चकित रह गए और जयघोष करने लगे। श्री रामदेव जी ने घोषणा की –
“यहां डाली की समाधि बनेगी, मेरी समाधि दो दिन बाद ली जाएगी।”
डाली ने आशीर्वाद स्वरूप कहा –
“जो मेरी समाधि पर श्रद्धा से पूजा करेगा, उसके घर धन-धान्य की कमी नहीं रहेगी।
मेरी पूजा रामदेव जी की पूजा के साथ ही मानी जाएगी।”
यह कहकर वह समाधि में प्रवेश कर गई और ओम् शांति की ध्वनि के साथ ध्यानस्थ होकर ब्रह्म में लीन हो गई।
श्री रामदेव जी की समाधि

दो दिन पश्चात भाद्रपद शुक्ला एकादशी को रामदेव जी ने राम सरोवर किनारे सत्संग किया।
प्रातः अपनी बताई हुई जगह पर समाधि खुदवाई गई, जहाँ पाट, पीतांबर, शंख, खड़ाऊं मिले।
उन्होंने सबको अंतिम प्रणाम किया और कहा –
“हर माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया को कीर्तन और भजन करो।
मेरे जन्मोत्सव पर माघ में और समाधि दिवस पर भाद्रपद शुक्ल दशमी व एकादशी को मेला लगेगा।
मेरी समाधि को कभी न खोला जाए, वरना विनाश होगा।
मेरी समाधि पर जो दीपक, धूप, गूगल और सफेद ध्वजा अर्पित करेगा, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होंगी।
मेरी पूजा में ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं होगा।”
इसके बाद उन्होंने अपने प्रिय घोड़े को आकाश में विदा किया।
फिर रतन कटोरा, पीताम्बर, और अन्य वस्तुएं अपने साथ समाधि में रखीं और अंतर्ध्यान हो गए।
रामदेव पीर की जय!
बाबा भली करे!
रामदेव जी का पगलिया (पदचिन्ह)
श्री रामदेव चरणौ मनसा स्मरामि ।
श्री रामदेव चरणौ वचसा गृणामि ।
श्री रामदेव चरणौ शिरसा नमामि ।
श्री रामदेव चरणौ शरणं प्रपद्ये ।।
यह मंत्र भक्त के हृदय, वाणी, मस्तक और आत्मा को बाबा रामदेव जी के चरणों में समर्पित करता है।
श्री रामदेव यंत्र
🕉 रामदेवाय नमः
अष्टाक्षरी महामंत्र:
ॐ नमो भगवते नेतलनाथाय
सकल रोग हराय
सर्व सम्पत्ति कराय मम्
मनोभिलाषित कार्य सिद्धाय
ॐ श्री रामदेवाय नमो नमः
यह महामंत्र सभी प्रकार की बाधाओं, रोगों और संकटों से मुक्ति दिलाता है।
मनोकामना पूर्ति एवं सुख-समृद्धि के लिए इसे नियमित रूप से जपना अत्यंत फलदायी माना गया है।
श्री रामदेव जी का स्वरूप और अवतार
रामदेव जी का जन्म अजमल जी के घर हुआ था।
इन्हें भैरव राक्षस विध्वंसक, श्रीकृष्ण के उप-अवतार और कलियुग के कल्याणकर्ता के रूप में पूजा जाता है।
ये अपने भक्तों के संकट हरते हैं और सच्ची श्रद्धा पर सदा कृपा बरसाते हैं।
शुक्ल पक्ष की शुभ तिथियाँ (जम्मा जागरण हेतु)
नीचे दिए गए माहवार शुक्ल पक्ष की तिथियाँ बाबा के भक्तों के लिए विशेष पुण्यकारी मानी जाती हैं। इन तिथियों पर जम्मा जागरण, अखंड कीर्तन, यज्ञ, एवं दीपदान अत्यंत फलदायी होते हैं।
माह | शुक्ल पक्ष की शुभ तिथियाँ |
---|---|
चैत्र | 2, 3 9, 1, 5, 3 |
वैशाख | 1, 2 11, 15 |
श्रावण | 2, 10, 15, 30 |
भादवा | 2, 10, 11,3,15 |
आसोज | 1,2, 9,10,11,15 |
कार्तिक | 2, 10, 11, 12, 13, 14, 15 |
माघ | 2, 9, 10, 11, 15, 30 |
(टिप्पणी: उपरोक्त तिथियाँ जम्मा-जागरण, व्रत, यज्ञ व आराधना के लिए विशेष शुभ मानी जाती हैं)
📿 भक्ति का संकल्प
जो व्यक्ति बाबा रामदेव जी के पवित्र “पगलिया” (चरण चिन्हों) को नमन करता है, श्रद्धा से महामंत्र का जाप करता है, और शुभ तिथियों पर उपासना करता है — उसका कल्याण निश्चित है।
🙏
जय बाबा री!
रामदेव जी सरकार की जय!
🌸 डाली बाई का परिचय 🌸
रूणीचा धाम से लगभग 5 किलोमीटर दूर एक विशाल जाल (कीकर) वृक्ष था। उसी वृक्ष के समीप प्रभु रामदेव जी के एक परम भक्त और शायर मेगवासी का घर था।
वे दिन-रात प्रभु रामदेव जी की भक्ति और भजनों में लीन रहते थे।
एक समय मारवाड़ में इन्द्र देव का प्रकोप हुआ और वर्षा पूर्ण रूप से रुक गई। भयंकर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई, चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।
यह देखकर प्रभु रामदेव जी ने इन्द्र देव को प्रसन्न करने हेतु एक यज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से किया गया। इन्द्रदेव इस यज्ञ से अत्यंत प्रसन्न हुए और वर्षा रूपी अमृत वर्षा कर दी — चारों ओर जल ही जल हो गया।
श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
🌺 चमत्कारिक टोकरी और डालीबाई का प्राकट्य
यज्ञ की पूर्णाहुति के समय एक चमत्कार हुआ —
हवन कुंड से एक टोकरी स्वयं ऊपर उठी और जाकर उस जाल वृक्ष की एक डाली पर लटक गई।
यह दृश्य जिसने भी देखा, दंग रह गया।
जब प्रभु रामदेव जी ने यह समाचार सुना, तो वे अपने परम भक्त शायर मेगवासी
को साथ लेकर उस डाली के पास पहुँचे। जब टोकरी नीचे उतारी गई, तो उसमें एक अत्यंत सुंदर कन्या विराजमान थी।
प्रभु रामदेव जी ने उस कन्या को शायर को सौंपते हुए कहा:
“इसे तुम पालो-पोसो। इसका नाम डाली बाई रखना।”
भक्त शायर ने उस कन्या को पुत्रीवत पालना प्रारंभ किया। प्रभु की भक्ति में लीन शायर का प्रभाव डाली बाई पर भी पड़ा, और वह भी रामदेव जी की भक्ति में रमती चली गई — ठीक उसी तरह जैसे मीराबाई श्रीकृष्ण प्रेम में मगन रहती थीं।
🌼 भक्त डालीबाई का भजन भाव:
“अन्नदाता रा बाछड़िया बन में चरावती,
नित उठ दर्शन पावती जीओ। खम्मा…”
“भक्ति भाव ज्यों हृदय में विराजे,
पल भर ना विसरावती जीओ। खम्मा…”
इन पंक्तियों से डाली बाई की भक्ति, सरलता और प्रभु के प्रति प्रेम का भाव प्रकट होता है।
डाली बाई भक्तों के लिए भक्ति, समर्पण और सेवा भावना की प्रेरणा बन गईं।
आज भी रूणीचा आने वाले श्रद्धालु डाली बाई को रामदेव जी की पुत्री समान श्रद्धा से पूजते हैं।
🙏
जय बाबा री!
डाली बाई की जय!
🌕 दूज (बीज) का व्रत — एक श्रद्धा, एक साधना 🌕
भादूड़े री दूज से जब चंदो करे प्रकाश,
रामदेव बण आवसूं, राखीजै विश्वास।
🌿 व्रत का महत्व
व्रत केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक ही नहीं हैं, बल्कि ये हमारे
शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी होते हैं। यही उद्देश्य लेकर बाबा रामदेव जी ने
अपने भक्तों को दो व्रत रखने का उपदेश दिया—
- प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की दूज (बीज)
- और एकादशी तिथि
बाबा की दृष्टि में ये दोनों तिथियाँ उपवास व साधना के लिए सर्वोत्तम
मानी जाती हैं। उनके भक्त आज भी इन तिथियों को अत्यंत श्रद्धा और नियमपूर्वक उपवास करते हैं।
🌱 बीज तिथि का आध्यात्मिक रहस्य
दूज के दिन से चन्द्रमा की कलाएं बढ़ने लगती हैं — इसी कारण इसे “बीज” कहा गया है। जैसे एक छोटे-से बीज में वटवृक्ष की विशाल शाखाएँ, पत्ते, और फल छिपे रहते हैं,
वैसे ही दूज भी विकास और संभावनाओं की शुरुआत का प्रतीक है।
बाबा रामदेव जी ने इस बीज स्वरूप तिथि को आशावाद और जीवन के सकारात्मक विकास से जोड़ा। उनका यह व्रत मनुष्य के भीतर आत्मिक प्रगति और आध्यात्मिक स्थिरता का बीजारोपण करता है।
🔱 बीज व्रत विधि
🌄 व्रत का प्रारंभ:
- व्रत से पूर्व रात में ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- प्रातःकाल उठकर नित्यकर्म करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- घर में स्थापित बाबा रामदेव जी की प्रतिमा या पगलिया का कच्चे दूध व जल से अभिषेक करें।
- गुग्गल की धूप दिखाएँ और मौन जाप करते हुए दिनचर्या करें।
🍵 उपवास नियम:
- इस दिन अन्न ग्रहण वर्जित होता है।
- केवल चाय, दूध, फलाहार लिया जा सकता है।
- दिनभर बाबा का स्मरण और मन में बीज मंत्र का जाप करें।
🌕 व्रत का समापन — चंद्र दर्शन के पश्चात:
- सूर्यास्त के बाद चन्द्रमा के दर्शन करें और व्रत तोड़ें।
- यदि बादलों के कारण चन्द्र दर्शन न हो सके तो बाबा रामदेव जी की ज्योति देखकर व्रत समाप्त करें।
🔥 ज्योति विधि:
- एक साफ लोटे में शुद्ध जल भरें।
- देशी घी की ज्योति उपलों (कंडा) के अंगारों पर जलाएँ।
- चूरमे का भोग बाबा को अर्पित करें।
- ज्योति से थोड़ी भभूती जल में मिलाकर पूरे घर में छिड़कें।
- चरणामृत का स्वयं पान करें व सभी उपस्थितों को दें।
- चूरमे का प्रसाद भी सभी को बाँटें।
🙏 व्रत समापन मंत्र:
पाँच बार मन में बीज मंत्र का उच्चारण करें और फिर व्रत का समापन करें।
📿 बीज मंत्र
ॐ नमो भगवते नेतलनाथाय,
सकल रोग हराय, सर्व सम्पत्ति कराय।
मम मनोभिलाषितं देहि देहि कार्यं साध्य,
ॐ नमो रामदेवाय स्वाहा।।
🌸 व्रत का फल
इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से—
- परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- रोग-शोक, कष्ट, व आपदा से रक्षा होती है।
- जीवन में धैर्य, संयम और उत्साह का संचार होता है।
🕉️
रामापीर जी की जय।
बीज व्रत की शुभकामनाएं।

📿 कानकीधाम मंदिर का संक्षिप्त परिचय

जय बाबे री !
कानकीधाम में श्रीकृष्ण के अवतार बाबा रामदेव जी का एक भव्य और दिव्य मंदिर स्थापित हो चुका है। यह मंदिर किशनगंज (बिहार) से लगभग 14 किमी दूर, किशनगंज-दलकोला (पश्चिम बंगाल) मार्ग पर स्थित है। यह स्थान आज अपने चमत्कारों के कारण एक “परचा मंदिर” के रूप में विख्यात हो चुका है।
मंदिर की आध्यात्मिक छटा ऐसी है कि जैसे स्वयं बाबा यहीं विराजमान हों। जो भी श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए पधारे हैं, उन्होंने बाबा की कृपा से—
- संतान सुख,
- असाध्य रोगों से मुक्ति,
- रुके हुए कार्यों की सिद्धि,
- व्यापार में उन्नति,
- मनोकामना पूर्ण जैसे अद्भुत फल पाए हैं।
🙏 आप सभी श्रद्धालुओं से निवेदन है कि एक बार अवश्य बाबा के पावन दर्शन कर इस धाम की अनुभूति करें।
बाबा आपकी भली करें।
🌸 मंदिर की प्रमुख विशेषताएं
- यात्रियों के लिए अतिथि गृह, भोजनालय और भण्डारा गृह की सुविधा
- बाग-बग़ीचे, फव्वारे, बच्चों के लिए झूले
- अमृतधारा (शुद्ध पेयजल हेतु R.O. प्लांट)
- श्री रामदेव स्वीट्स (प्रसाद व पूजन सामग्री के लिए)
- वीरमदेव-रामदेव पालना, डाली बाई का कंगन व झूला
- बाबा के परिवार की समाधियाँ व जुगल झूला
- रामदेवरा से आई अखंड ज्योति व अखंड धूणी प्रज्वलित
🧡 ट्रस्ट की जनसेवा योजनाएं
- नेत्र जांच शिविर, स्वास्थ्य परीक्षण, सदाव्रत सेवा
- आपात स्थिति में राहत कार्य
- जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री, कपड़े, दवा आदि का निःशुल्क वितरण
🛕 मंदिर परिसर की संरचना
- कुल क्षेत्रफल: 1,13,125 वर्गफुट
- मुख्य मंदिर हॉल: 3200 वर्गफुट
- मंदिर तल का हॉल: 2700 वर्गफुट
- गुम्बद की ऊँचाई: 95 फीट
- अतिथि गृह में 8 कमरे (सभी में टॉयलेट-बाथरूम)
- नीचे का हॉल: 2400 वर्गफुट (स्टोर व रसोई सहित)
- परिसर में 5 पुरुष और 5 महिला सामान्य टॉयलेट-बाथरूम
श्रीकृष्ण अवतार बाबा रामदेव मंदिर ट्रस्ट एवं बाबा रामदेव मंडल
📞 संपर्क: 9800605345 (O)

जय बाबे री
श्री रामदेवाय नमः
श्री बाबा रामदेवजी की आरती -१
|| दोहा ||
चारों कुंट और चौदह भुवन में, थांरी जय हो जय जयकारी।
जगमग जगमग करां आरती, थांरी जै हो नेजाधारी ।।
बोलो अजमल घर अवतार की जय ।
आरती
पीछम धरां सूं म्हारा बापजी पधारया, पीछम धरां सूं म्हारा पीर जी पधारया
घर अजमल अवतार लियों, लाछां बाई-सुगना बाई, करे हर री आरती,
हरजी भाटी चंवर ढुले, बैकूंठा में बाबा होवे हर री अरती।
वीणा
वीणां रे तन्दूरा धणी रे नौबत बाजै -२, झालर री झन्कार पड़े।
लांछा बाई-सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भारी चंवर ठुले ।।
बैकूंठा में रामा होवे हर री आरती ।
धीरत
धीरत मिठाई बाबा चढ़े थांरे चुरमों-२, धूपां री महकार उड़े।
लांछा बाई – सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर दुले।
बैकंठा में रामा होवे हर री आरती ।
खम्मा
खम्मा म्हारें बापजी ने सारो युग ध्यावे-२
अजमल जी रा कंवरा रो भेद नहीं पावे – २
द्वारका रा नाथ थांने सारो युग ध्यावे -२
जैसी ज्यांरी भावना-वैसो फल पावे- २
गंगा रे यमुना बहे रे सरस्वती -२ जठे रामदेव बाबो स्नान करे।
लांछा बाई-सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर दुले।।
बैकुंठा में रामा होवे हर री आरती ।
केशर
केशर कूं कूं रा भरीया रे चौपड़ा – २, रामदेव बाबो तिलक करे।
लांछा बाई-सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर दुले।।
बैकुंठा में रामा होवे हर री आरती ।
दूर
दूरां रे देशां रा बाबा आवे थांरे यात्री -२, दरगा आगे बाप जी ने नमन करे।
लांछा बाई-सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर दुले।।
बैकंठा में रामा होवे हर री आरती ।
और
और देवां रा बाबा माथा तो पूजीजे – २,
म्हारें बापजी रा पगलिया पूजीजे जीओ।
लांछा बाई – सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर ढुले । ।
बैकुंठा में रामा होवे हर री आरती ।
अंख्या
आंधलिया ने आँख्या देवे, पांगलिया ने पांव देवे – २,
बाबो बांझणीयां रा पालणीया झुलावे जीओ । ।
लांछा बाई – सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर ढुले ।।
बैकुंठा में रामा होवे हर री आरती ।
हरी
हरी शरणें में भाटी हरजी रे बोलिया-२, नवों रे खण्डो में निशान चुरे।
लांछा बाई-सुगना बाई करे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर दुले।
बैकुंठा में रामा होवे हर री आरती ।
पिछम
पीछम धरां सूं म्हारा बापजी पधारया, पीछम धरां सूं म्हारा पीर जी पधारया
हो घर अजमल अवतार लियो, लाछां बाई-सुगना बाई करे हर री आरती,
हरजी भाटी चंवर दुले,
बैकूंठा में बाबा होवे हर री आरती, हरजी भाटी चंवर ढुले ।
रामा सामा आवजौ – होई घुड़ले असवार
हेलो म्हारों सांभलौ -राणी नैतल रा भरतार – २
बोलो अजमल घर अवतार की जय, बोलो रामा राजकुमार की जय,
बोलिये भक्तनी डाली बाई की जय, बोलिये भक्तराज हरजी भाटी की जय ।
आरती -२
ॐ जय अजमल लाला, हो प्रभु जय अजमल लाला
हो प्रभु राम रूणीचे वाला, हो प्रभु लीले घोड़े वाला,
प्रभु मैणां दे रा लाला- प्रभु डाली बाई रा वीरां,
प्रभु नैतल भरतारा हो प्रभु हाथ लिये भाला,
हो प्रभु धौली ध्वजा वाला
प्रभु भक्तों के रखवाला,
भक्त काज कलयुग में लीनो अवतारा, ॐ जय अजमल लाला ।
अश्वान
अश्वन की असवारी, सोहे केसरीया जामा – २ हो प्रभु… शीष तुर्रा हद सोहे – २
हाथ लिये भाला – ॐ जय अजमल…
डूबत
डूबत जहाज तिराई भैंरु दैत्य मारा – २ हो प्रभु…
कृष्ण कला भय भंजन -२ धाम रुणीचे वाला – ॐ जय अजमल…
अन्धन को प्रभु नेत्र देत है, सुख सम्पति माया-२ हो प्रभु…
कानों मे कुण्डल झिलमिल-२, गल पुष्पन माला – ॐ जय अजमल,
नाथ द्वारका से चलकर के धोरों में आया -२ हो प्रभु…
चारों खूंट चहुं दिश में -२ नेजा फहराया – ॐ जय अजमल…
जब जब भीड़ पड़ी भक्तन पर दौड़-दौड़ आया -२ हो प्रभु…
जहर भरे जीवन में – २ अमृत बरसाया – ॐ जय अजमल…
कोढ़ि जब करुणां कर आवत होय दुःखित काया -२ हो प्रभु…
शरणागत प्रभु तेरी – २ भक्तन सुख पाया – ॐ जय अजमल…
आरती रामदेवजी की जो कोई नर गावे २ हो प्रभु…
हो प्रभु प्रेम सहित गावे, हो ज्यारां पाप उतर जावे । हो ज्यारें घर लक्ष्मी आवे, हो ज्यारें आनन्द होय जावे ।
कटे पाप तन मन का – २ विपदा मिट जावे – ॐ जय अजमल….
रामदेव चालीसा
जय जय प्रभु रामदेव, नमो नमो हरबार ।
लाज रखो प्रभु नन्द की हरो पाप का भार ।
दीन बन्धु कृपा करो, मोर हरो संताप ।
स्वामी तीनों लोक के हरो क्लेश और पाप।।
जय जय रामदेव जयकारी, विपद हरो प्रभु आन हमारी ।।
प्रभु हो सुख सम्पति के दाता, भक्तजनों के भाग्य विधाता ।।
बाल रूप अजमल घर धारा, बनकर पुत्र सभी दुःख टारा।।
दुःखियों के प्रभु हो रखवारे, लगते आप सभी को प्यारे ।।
आप हि रामदेव प्रभु स्वामी, घट घट के प्रभु अर्न्तयामी ।।
प्रभु
प्रभु भक्तों के हो भय हारी, मेरी भी सुध लो अवतारी ।।
जग में नाम प्रभु का भारी, भजते घर-घर सब नर नारी ।।
दुख: भंजन है नाम प्रभु का, जानत आज सकल संसारा ।।
सुन्दर धाम रूणिचा स्वामी, प्रभु हो जग के अर्न्तयामी ।।
कलयुग में प्रभु आप पधारे, अंश एक पर नाम है न्यारे।।
प्रभु हो भक्त जनों के रक्षक, पापी दुष्ट जनो के भक्षक।
सोहे हाथ में आपके भाला, गले में सोहे सुन्दर माला ।।
आप सुशोभित अश्व सवारी, कृपा करो मुझ पर अवतारी ।।
नाम प्रभु का ज्ञान प्रकाशे, पाप अविधा सब दुःख नाशे।।
लीला
प्रभु भक्तों के भक्त प्रभु के, नित्य बसो प्रभु हिये हमारे ।।
लीला अपरम्पार तुम्हारी, सुख दाता भय भंजनहारी ।।
निर्बुधि भी विद्या पावे, रोगी रोग बिना होय जावे।।
पुत्रहीन सू सन्तति पावे, सुयश ज्ञान करी मोद मनावे।।
दुर्जन दुष्ट निकट नहीं आवे, भूत पिशाच सभी भय खावे ।।
जो कोई पुत्र हीन नर ध्यावे, निश्चय ही नर वो सुत पावे।।
प्रभु ने डूबत नाव उबारी, नमक किया मिसरी को सारी।।
पीरों को परचा प्रभु दिन्हा, नीर सरोवर खारा किन्हा । ।
प्रभु ने पुत्र दिया दलजी को, ज्ञान दिया प्रभु ने हरजी को ।
सुगना का दुःख प्रभु हर लीना, पुत्र मरा सर जीवन किन्हा।।
जो कोई प्रभु का सुमिरन करते, उनके हित पग आगे धरते।।
जो कोई टेर लगाता तेरी, करते आप तनिक ना देरी ।।
विविध रूप धर भैरव मारा, जांभा को परचा दे डारा | |
जो
जो कोई शरण आपकी आवे, मन इच्छा पूरण होय जाये ||
नयन हीन के प्रभु रखवारे, कोढ़ी पूंगल के दुःख टारे | |
नित्य पढ़े चालीसा कोई, सुख सम्पति वांके घर होई | |
जो कोई भक्ति भाव से ध्याता, मन इंच्छित फल वो नर पाता।।
मैं भी सेवक हूं प्रभु तेरा, काटो जनम मरण का फेरा।।
जय जय हो प्रभु लीला तेरी, पार करो प्रभु नैया मेरी।।
करता भक्त विनय प्रभु तेरी, करहू नाथ तुम मम उर डेरी।।
॥ दोहा ॥
भक्त समझ किरपा करी नाथ पधारे दौड़ ।
विनती है प्रभु आपसे नन्द करें कर जोड़।।
ये चालीसा नित्य उठ पाठ करे जो कोय।
मन वांछित फल पाये वो सुख संपति घर होय ।।
बोलो रामसा पीर की जय
॥ श्री रामदेव जी की स्तुति।।
श्री रामदेव जी कृपालु भजमन, हरण भव भय धारूणम्।
अवतार धार उतार भार उद्धार घरणी कारणम् ।।
कर्ण कुण्डल हस्त भाला, तिलक सुन्दर शोभितम् ।
पीत पर गल पुष्प माला, नील अश्वा रोहितम्।।
श्री रामदेव जी कृपालू..
कष्ट
कष्ट कारण दलन दानव, भक्त आनन्द कारणम्।
पाप तारण भैरव मारण, सन्त जनन उद्धारणम् ।
श्री रामदेव जी कृपालू …
भक्त पाल नयन विशाल, उदार अंग विभूषणम् ।
पीर देव मेणां दे नन्दन, क्लेश कष्ट विधूषणम् ।
श्री रामदेव जी कृपालू …
ऋषि महर्षि वदत नाथ, सन्त जन मन रंजणम् ।
हृदय नित्य निवास करू, श्री रामदेव अजमल नन्दनम् -२
श्री रामदेव जी कृपालू…
|| श्रद्धा का फल ||
अन्न, धन, पुत्र, आरोग्यता,
बढ़े घणों व्यापार,
विजय आनन्द सन्मति देवें,
श्री रामदेवजी अवतार
जिण घर में आन्नद लीला रेहसी,
बाँ घर की बात
पुजा करसी प्रेम सूं,
बाँने फल मिलसी ये सात ।
“बोलिये : साँचे दरबार की जय
रामा राजकुमार की जय ।।
माफी नामा
बाबा श्री रामदेव, जाणूं नहीं कुछ बात ।
भूल-चूक सब माफ करों, रख दो सिर पर हाथ ।।
सब कुछ दिया आपनें, भेंट करु क्या नाथ
नमस्कार की भेंट लो, जोडू दोनूं हाथ
बाबा सब कुछ मांगल्यो, जो कुछ मेरे पास।
दो नैणां मत मांगज्यो, थारे दर्शन री आस ।।
बेगा पधारो बाप जी, भक्त करे अरदास ।
म्हारे घर में आवज्यो, म्हाने पूरो विश्वास ।।
जिस घर में हो आरती, चरण कमल चित्त लाय ।
वहां प्रभु बासा करो, ज्योति अनन्त जगाय-२।।
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1.श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
2श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
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10.श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
11.श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
रामदेव
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21.श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
22.श्री कृष्णावतार बाबा रामदेव
